चूँकि एक महिला के शरीर की संरचना पुरुष के शरीर से भिन्न होती है और पुरुषों तथा महिलाओं के बीच मूलभूत असमानतायें हैं। इसलिए महिलाओं के लिए स्वास्थ्य व बीमारी का खतरा अधिक होता है। भारत में महिलाओं में बीमारिओं तथा मृत्यु के अनके कारण हैं। प्रमुख कारणों का सम्बन्ध कुपोषण, संचारी रोग तथा जनान व बल स्वास्थ्य समस्याओं से हैं। गर्भावस्था तथा प्रसव सम्बंधित रोगों की तुलना में तपेदिक से मरने वाली महिलाओं की संख्या कहीं अधिक है। यहां कुछ ऐसे ही स्वास्थ्य समस्याओं का वर्णन किया जा रहा है जो महिलाओं को अधिक प्रभावित करती है।
गरीब देशों में, महिलाओं में कुपोषण सबसे अधिक तथा अशक्तकारी स्वास्थ्य समस्या है। शैशवकाल से ही भोजन मिलने में उसके साथ भेदभाव शुरू हो जाता है। उसे मां का दूध भी कम समय तक पिलाया जाता है बचपन में भी एक लड़के की तुलना में उसे कम भोजन दिया जाता है परिणामस्वरूप उसकी वृद्धि व शारीरिक विकास धीमी दर से होता है और उसकी हड्डियों का विकास सही प्रकार से नहीं होता है (जिसके कारण बाद में बच्चा पैदा करने में परेशानी आती है) उसके नवयुवती बनने तक यह समस्या और बढ़ जाती है क्योंकि उसके काम का बोझ बढ़ने व माहवारी शुरू होने, जल्दी विवाह होने, गर्भ धारण करने तथा स्तनपान करने से उसकी अच्छी भोजन की आवश्यकता भी बढ़ जाती है ।
पर्याप्त भोजन न मिलने के कारण उसका सामान्य स्वास्थ्य ख़राब रहने लगता है तथा व थकावट, कमजोरी तथा रक्त अल्पता (खून की कमी: अनीमिया) से ग्रसित होने लगती है भारत में 80% गर्भवती महिलाओं में खून की कमी की बीमारी पाई जाती है और लगभग 20% महिलायें कद में काफी छोटी रह जाती है। ऐसी महिला जो पहले से ही कुपोषित हैं अगर गर्भवती होती हैं तो उसे प्रसव के साथ कुछ गंभीर जटिलतायें हो सकती हैं जैसे खून का बहना, संक्रमण आदि या फिर उसका नवजात शिशु छोटा व कमजोर पैदा हो सकता है।
समाज के कमजोर वर्गों में महिलाओं का पोषण स्तर ख़राब होने के प्रमुख कारण हैं : गरीबी, जमीन न होना, रहन-सहन की निम्न परिस्थितियाँ तथा विकास की ऐसी प्रक्रिया जो ग्रामीणों महिलाओं गरीबों तथा पर्यावरण विरोधी हैं।
अच्छे पोषण के लिए आवश्यक है कि महिलाओं तथा उनके परिवारों को पर्याप्त तथा कम कीमत में भोजन मिले ताकि वे अपने भूख शांत कर सके और पोषण की आवश्यकताओं को पूरा कर सके। इसके साथ यह भी आवश्यक है कि बाढ़ व सूखे जैसे आपातकालीन स्थितियों का सामना करने के लिए अतिरिक्त भोजन का भंडार उपलब्ध हो ।
शारीरिक रूप से पुरुष की तुलना से, एक महिला को प्रजनन तंत्र के संक्रमण होने का खतरा अधिक होता है। यौन संचारित रोगों के मामले में, पुरुष का वीर्य, महिला के शरीर के अन्दर रहता है और उसमें उपस्थित कीटाणु, योनी की भित्ति में से गुजर कर खून में प्रवेश कर सकते हैं। चूँकि अक्सर ही महिला में संक्रमण के लक्षण प्रकट नहीं होते हैं, इसलिए उसको कोई उपचार भी नहीं मिलता है।
परन्तु वास्तव में ये एक सामाजिक समस्या है जिसके होने के कारण हैं –स्वास्थ्य सेवाओं की अनुपस्थिति या सीमित उपलब्धि, स्वछता व जल सुविधाओं का निम्नस्तर, अत्यधिक भेदभाव, लिंग असमानता, अल्प स्वयं निर्भरता तथा हाथ में पैसा न होना । इन सबके कारण निर्भरता में वृद्धि तथा परिवार, स्वास्थ्य, यौन सम्बन्धों तथा प्रजनन संबंधित निर्णय पर बहुत कम नियंत्रण होता है तथा वे असुरक्षित यौन संबंधों को “ना” नहीं कह पाती है । परिणामस्वरूप, प्रतिवर्ष 16.5 करोड़ महिलाएं यौन संचारित रोगों से ग्रस्त हो जाती हैं (केवल 1995 में ही लगभग 16.5 लाख महिलाएं एच.आई.वी से संक्रमित हो गईं)। उपचार न मिलने के कारण, इन संक्रमणों की वजह से असहनीय दर्द ,- पेल्विक डिजीज (पी.आई.डी), संतानहीनता, गर्भावस्था में समस्यायें बच्चेदानी की ग्रीवा का कैंसर तथा एच.आई.वी/ एड्स होने का अधिक खतरा ही सकता है ।
भारत में महिलाओं को जल्दी-जल्दी तथा बार-बार गर्भधारण करना पड़ता है और अनके नवयुवतियां 18 वर्ष से पहले की मां बन जाती हैं। इनमें से अनके महिलाओं के अधिक बच्चे होते हैं तथा उन्हें बच्चों के जन्मों के बीच के समय में अपने शरीर को स्वास्थ्य व मजबूत बनाने का अवसर नहीं मिलता है। इससे जटिलताओं का खतरा बढ़ जाता है । बार-बार प्रसव का यह भी अर्थ है कि स्वयं के जीवन पर नियंत्रण कम हो जाता है तथा वह शिक्षा और अपने आप को आत्मनिर्भर बनाने के लिए आवश्यक दक्षताएं प्राप्त नहीं कर पाती हैं ।
पिछले 30 वर्षों में भारत में शिशु मृत्यु दर में काफी कमी आई है। फिर भी, गर्भधारण तथा प्रसव के कारण मरने वाली महिलाओं की संख्या में कमी नहीं हुई है । पूरे विश्व में, प्रति मिनट, गर्भधारण से जुडी हुई समस्याओं के कारण एक महिला की मृत्यु हो जाती है । मरने वाली हर महिला के अनुपात में 18 अन्य महिलाएं ऐसी होती हैं जिन्हें गर्भधारण तथा प्रसव सम्बंधित समस्याएँ उत्पन्न हो जाती हैं ।
जब कोई महिला असुरक्षित गर्भपात द्वारा अपने गर्भ का अन्त करना चाहती है तो वह अपने जीवन को खतरे में डालती है । फिर भी प्रतिदिन लगभग 50 हजार महिलाएं तथा लड़कियाँ अपने गर्भों को असुरक्षित तरीकों से समाप्त करने के कोशिश करती है क्योंकि उन्हें सुरक्षित गर्भपात करने की सुविधा उपलब्ध नहीं है । इनमे से अनेक तत्पश्चात संतान हीनता, चिरकालीन दर्द, संक्रमण या अन्य ऐसी ही स्वास्थ्य समस्याओं से पीड़ित रहने लगती है गर्भ अवस्था में होने वाली हर 10 मौतों में से एक असुरक्षित गर्भपात के कारण होता है ।
अवहेलना, कुपोषण, जिस प्रकार का कार्य उन्हें करना पड़ता है थकावट तथा चिकित्सा सुविधाओं के मिलने में देरी जैसी कारणों की वजह से, पुरुषों की तुलना में महिलाओं को कुछ विशेष स्वास्थ्य समस्याओं का समाना करना पड़ता है। एक बीमारी भी, पुरुष की अपेक्षा महिला में कुछ अलग किस्म का नुकसान कर सकती है। साधारणतया तपेदिक(टी.बी), संतानहीनता उत्पन्न कर सकती है और मलेरिया के कारण गर्भपात तथा बच्चा जन्म के समय मृत पैदा हो सकता है । इसके अतिरिक्त ऐसा भी हो सकता है कि बीमारी से ग्रस्त महिला को उसका पति छोड़ भी सकता है क्योंकि वह कमजोर भी हो गई है या उतनी सुन्दर नहीं रह गई है । जब तक वह अत्यधिक गंभीर रूप से बीमार न पड़े, इसकी सम्भावना कम है कि महिला बीमार होने पर उपचार प्राप्त करने की कोशिश करे या उसे उपचार मिल जाये । साधारणतया तपेदिक रोग पुरुष व महिला में सामान रूप से फ़ैल रहा है परन्तु पुरुष की तुलना में बहुत कम महिलाओं को उपचार मिल पाता है।भारत में लगभग 1 करोड़ लोग तपेदिक से ग्रस्त हैं। इनमें से लगभग 25 लाख रोगी संक्रामक (दूसरों को यह रोग फैलाने में सक्षम) हैं । प्रतिवर्ष लगभग 5 लाख रोगी तपेदिक के कारण मृत्यु के मुंह में चले जाते हैं । इनमे से आधी या अधिक महिलायें होती हैं।
ऐसी स्वास्थ्य समस्यायें जो पहले अधिकतर पुरूषों में होती थी, अब महिलाओं के लिए खतरा बन गई हैं। उदाहरणतया, तम्बाकू तथा मदिरा सेवन से होने वाली समस्याओं से अब अधिक महिलायें पीड़ित हैं।
महिलाओं को उनके द्वारा किये जाने वाले कार्यों से उत्पन्न स्वास्थ्य खतरों का प्रतिदिन सामना करना पड़ता है। घर पर, धुआं से, होने वाली फेफड़ों की बीमारियां तथा खाना बनाते समय आग आदि से जल जाना इतना सामान्य है कि उन्हें महिलाओं के लिए कार्य संबंधित मुख्य स्वास्थ्य खतरे माना जाता है। दूषित जल के सेवन से होने वाले रोग भी काफी सामान्य हैं ।
जब वे खेत में कार्य करती है तो वहाँ वे ऐसी हानिकारक कीटनाशक दवाईयों के सम्पर्क में आती है जो उन्हें तथा अजन्मे (गर्भ में पल रहे) बच्चे के स्वस्थ्य पर दुष्प्रभाव डालती हैं।
लाखों ऐसी महिलाएं जो घर के बाहर काम करती हैं बेहद कठिन कार्य, परिस्थितियों के कारण स्वास्थ्य समस्याओं से पीड़ित हो जाती हैं और फिर जब नौकरी कर के अपने घर वापस आती हैं तो उन्हें घर पर भी कार्य करना पड़ता है। अत: उन्हें दुगुना कार्य करना पड़ता है परिणामस्वरूप उन्हें बेहद थकावट हो जाती है और बीमारी का खतरा बढ़ जाता है।
महिलाओं तथा पुरुषों में मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं विकसित होने की सम्भावना लगभग सामान होती है फिर भी पुरुषों के मुकाबले कहीं अधिक महिलाओं में गंभीर अवसाद (डिप्रेशन) देखने में आता है यह उन महिलाओं को अधिक प्रभावित करता है जो निर्धन हैं; जिनकी कोई व्यक्तिगत क्षति हुई है या फिर दहेज़ के अथवा सामाजिक दबाव के कारण जिनको हिंसा का सामना करना पड़ता है अथवा जिनके समुदाय को नष्ट कर दिया गया है या उनमें बहुत परिवर्तन हो गया है। पुरुषों की तुलना में ज्यादा महिलाओं को निर्मुख उत्पीड़न का सामना करना पड़ता है । यही निर्मुकता बाद में चिंता, घबराहट, सिरदर्द, बदनदर्द, अवसाद अथवा हिस्टीरिया के रूप में प्रकट होती है इन सब के बावजूद, पुरुषो की तुलना में यह सम्भावना कम है किसी भी प्रकार की स्वास्थ्य समस्या से पीड़ित होने के बावजूद भी कोई महिला स्वास्थ्य सेवाओं की सहायता ले या प्राप्त कर सके।
स्वास्थ्य समस्या के तौर पर हिंसा को अक्सर ही अनदेखा किया जाता है लेकिन हिंसा के कारण गंभीर चोटें, मानसिक स्वास्थ्य समस्यायें, शारीरिक अपंगता, व यहां तक की मृत्यु भी हो सकती है। भारत में महिलाओं के साथ हिंसा का एक बड़ा अंश दहेज़ संबंधित होता है तथा प्राय: गंभीर चोटें व मृत्यु का कारण बन जाती हैं। अनेक लड़कियों तथा महिलाओं को अपने पति ;परिवारजनों तथा मित्रजनों के हाथों यौन उत्पीड़न का शिकार बनाना पड़ता है हर महिला के लिए, बलात्कार व यौन उत्पीड़न का खतरा हमेशा बना रहता है मदिरा सेवन से जुडी हुई हिंसा एक अन्य गंभीर समस्या है जिसने महिलाओं के जीवन में तबाही मचा रखी है इस प्रकार की हिंसा, संसार के हर कोने में तथा लगभग सभी सामाजिक परिस्थितियों में होती है।
फिर भी महिलाओं के विरुद्ध अधिकतर हिंसा को रिपोर्ट नहीं किया जाता है क्योंकि पुलिस तथा अन्य लोग, समस्या के लिए महिलाओं को ही दोषी करार देते हैं, पुरुषों को नहीं । हिंसा करने वाले पुरुषों को शायद ही कभी दण्डित किया जाता है।
किस प्रकार महिलाओं को ख़राब स्वास्थ्य वाली जिंदगी में ढकेला जाता है ?
हालांकि सभी महिलाओं को ऊपर वर्णित स्वास्थ्य समस्याओं का सामना उन्हें करना पड़ता है फिर भी गरीबी, लिंग असमानता, अशिक्षा, जानकारी तथा उचित स्वास्थ्य सेवाओं की कमी के कारण कुपोषण, अधिक कार्य करना तथा कम अन्तराल वाले गर्भ जैसी समस्यायें उत्पन्न हो सकती हैं।
इनमे से हर समस्या महिला के स्वास्थ्य पर दुष्प्रभाव डालती है उसके तनाव को बढ़ाती है तथा उसके शरीर को खोखला कर देती है जिसके कारण उसके बीमार होने की सम्भावना बढ़ जाती है। गर्भ अवस्था के कारण कुछ चिकित्सकीय समस्याएं- जैसे कि मलेरिया, तपेदिक, हेपेटाइटिस, मधुमेह तथा अनीमिया और भी बद्तर हो जाती हैं – बिलकुल वैसे ही जैसे ये बीमारियां गर्भावस्था को और भी जटिल बना देती है। इन सब बातों तथा एक पर्याप्त आलंबन की कमी के कारण किसी महिला का सामान्य स्वास्थ्य पुरुष के मुकाबले में अधिक ख़राब होता है।
स्रोत
Last Modified : 2/21/2020
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