कोई भी ध्यानात्मक आसन जैसे सुखासन/पद्मासन/वज्रासन आदि
यह शवसन क्रिया उदर की मांसपेशियों के सहयोग से बिना किसी अतिरिक्त दबाव के होनी चाहिए। शवास बाहर छोड़ने की क्रिया वक्ष एवं कधा क्षेत्र में बिना किसी अनुचित दबाव अथवा गतिविधि के होनी चाहिए। पूरे अभ्यास के समय श्वास–उच्छ्वास सहज रूप से होना चाहिए।
प्रारंभिक अवस्था में 3 चक्र तक अभ्यास कर सकते हैं। प्रत्येक चक्र में 20 श्वासोच्छवास संख्या होनी चाहिए। धीरे-धीरे अभ्यास बढ़ाया जा सकता हैं।
हृदय संबंधी व्याधियों में, चक्कर आने, उच्च रक्तचाप, नासिका से रक्त प्रवाह, मिरगी, माइग्रेनस्ट्रोक, हर्निया एवं गैस्ट्रिक अल्सर होने की स्थिति में इस अभ्यास को नहीं करना चाहिए।
स्त्रोत : आर्येुवेद,योग व प्राकृतिक चिकित्सा,यूनानी,सिद्ध एवं होम्योपैथी(आयुष),मंत्रालय, भारत सरकार।
Last Modified : 2/21/2020
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