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सर्व शिक्षा अभियान

सर्व शिक्षा अभियान का कार्यान्‍वयन वर्ष 2000-2001 से किया जा रहा है जिसका उद्देश्‍य सार्वभौमिक सुलभता एवं प्रतिधारण, प्रारंभिक शिक्षा में बालक-बालिका एवं सामाजिक श्रेणी के अंतरों को दूर करने तथा अधिगम की गुणवत्‍ता में सुधार हेतु विविध अंत:क्षेपों में अन्‍य बातों के साथ-साथ नए स्‍कूल खोला जाना तथा वैकल्पिक स्‍कूली सुविधाएं प्रदान करना, स्‍कूलों एवं अतिरिक्‍त कक्षा-कक्षों का निर्माण किया जाना, प्रसाधन-कक्ष एवं पेयजल सुविधा प्रदान करना, अध्‍यापकों का प्रावधान करना, नियमित अध्‍यापकों का सेवाकालीन प्रशिक्षण तथा अकादमिक संसाधन सहायता, नि:शुल्‍क पाठ्य-पुस्‍तकें एवं वर्दियां तथा अधिगम स्‍तरों/परिणामों में सुधार हेतु सहायता प्रदान करना शामिल है

सर्व शिक्षा अभियान जिला आधारित एक विशिष्ट विकेन्द्रित योजना है। इसके माध्यम से प्रारंभिक शिक्षा का सार्वभौमीकरण करने की योजना है। इसके लिए स्कूल प्रणाली को सामुदायिक स्वामित्व में विकसित करने रणनीति अपनाकर कार्य किया जा रहा है। यह योजना पूरे देश में लागू की गई है और इसमें सभी प्रमुख सरकारी शैक्षिक पहल को शामिल किया गया है। इस अभियान के अंतर्गत राज्यों की भागीदारी से 6-14 आयुवर्ग के सभी बच्चों को 2010 तक प्रारंभिक शिक्षा उपलब्ध कराने का लक्ष्य रखा गया था।

सर्व शिक्षा अभियान

सभी व्यक्ति को अपने जीवन की बेहतरी का अधिकार है। लेकिन दुनियाभर के बहुत सारे बच्चे इस अवसर के अभाव में ही जी रहे हैं क्योंकि उन्हें प्राथमिक शिक्षा जैसे अनिवार्य मूलभूत अधिकार भी मुहैया नहीं कराई जा रही है।

भारत में बच्चों को साक्षर करने की दिशा में चलाये जा रहे कार्यक्रमों के परिणामस्वरूप वर्ष 2000 के अन्त तक भारत में 94 प्रतिशत ग्रामीण बच्चों को उनके आवास से 1 किमी की दूरी पर प्राथमिक विद्यालय एवं 3 किमी की दूरी पर उच्च प्राथमिक विद्यालय की सुविधाएँ उपलब्ध थीं। अनुसूचित जाति व जनजाति वर्गों के बच्चों तथा बालिकाओं का अधिक से अधिक संख्या में स्कूलों में नामांकन कराने के उद्देश्य से विशेष प्रयास किये गये। प्रथम पंचवर्षीय योजना से लेकर अब तक प्राथमिक व उच्च प्राथमिक विद्यालयों में नामांकन लेने वाले बच्चों की संख्या एवं स्कूलों की संख्या मे निरंतर वृद्धि हुई है। 1950-51 में जहाँ प्राथमिक शिक्षा प्राप्त करने के लिए 3.1 मिलियन बच्चों ने नामांकन लिया था वहीं 1997-98 में इसकी संख्या बढ़कर 39.5 मिलियन हो गई। उसी प्रकार 1950-51 में प्राथमिक व उच्च प्राथमिक विद्यालयों की संख्या 0.223 मिलियन थी जिसकी संख्या 1996-97 में बढ़कर 0.775 मिलियन हो गई। एक अनुमान के मुताबिक वर्ष 2002-03 में 6-14 आयु वर्ग के 82 प्रतिशत बच्चों ने विभिन्न विद्यालयों में नामांकन लिया था। भारत सरकार का लक्ष्य इस संख्या को इस दशक के अंत तक 100 प्रतिशत तक पहुँचाना है।

जैसा कि हम सभी जानते हैं कि विश्व से स्थायी रूप से गरीबी को दूर करने और शांति एवं सुरक्षा का मार्ग प्रशस्त करने के लिए जरूरी है कि दुनिया के सभी देशों के नागरिकों एवं उसके परिवारों को अपनी पसंद के जीवन जीने का विकल्प चुनने में सक्षम बनाया जाए। इस लक्ष्य को पाना तभी संभव है जब दुनियाभर के बच्चों को कम से कम प्राथमिक विद्यालय के माध्यम से उच्च स्तरीय स्कूली सुविधाएँ उपलब्ध कराई जाएँ।

सर्व शिक्षा अभियान क्या है

  • सार्वभौमिक प्रारंभिक शिक्षा के लिए एक स्पष्ट समय-सीमा के साथ कार्यक्रम।
  • पूरे देश के लिए गुणवत्तायुक्त आधारभूत शिक्षा की माँग का जवाब,
  • आधारभूत शिक्षा के माध्यम से सामाजिक न्याय को बढ़ावा देने का अवसर,
  • प्रारंभिक शिक्षा के प्रबंधन में - पंचायती राज संस्थाओं, स्कूल प्रबंधन समिति, ग्रामीण व शहरी गंदी बस्ती स्तरीय शिक्षा समिति, अभिभावक-शिक्षक संगठन, माता-शिक्षक संगठन, जनजातीय स्वायतशासी परिषद् और अन्य जमीन से जुड़े संस्थाओं को, प्रभावी रूप से शामिल करने का प्रयास,
  • पूरे देश में सार्वभौमिक प्राथमिक शिक्षा के लिए राजनीतिक इच्छा-शक्ति की अभिव्यक्ति,
  • केन्द्र, राज्य एवं स्थानीय सरकार के बीच सहभागिता व
  • राज्यों के लिए प्रारंभिक शिक्षा का अपना दृष्टि विकसित करने का सुनहरा अवसर।

लक्ष्य कथन

सर्व शिक्षा अभियान, एक निश्चित समयावधि के भीतर प्रारंभिक शिक्षा के सार्वभौमीकरण लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए भारत सरकार का एक महत्वपूर्ण कार्यक्रम है। 86 वें संविधान संशोधन द्वारा 6-14 आयु वर्ष वाले बच्चों के लिए, प्राथमिक शिक्षा को एक मौलिक अधिकार के रूप में, निःशुल्क और अनिवार्य रूप से उपलब्ध कराना अनिवार्य बना दिया गया है। सर्व शिक्षा अभियान पूरे देश में राज्य सरकार की सहभागिता से चलाया जा रहा है ताकि देश के 11 लाख गाँवों के 19.2 लाख बच्चों की जरूरतों को पूरा किया जा सके। इस कार्यक्रम के अंतर्गत वैसे गाँवों में, जहाँ अभी स्कूली सुविधा नहीं है, वहाँ नये स्कूल खोलना और विद्यमान स्कूलों में अतिरिक्त क्लास रूम (अध्ययन कक्ष), शौचालय, पीने का पानी, मरम्मत निधि, स्कूल सुधार निधि प्रदान कर उसे सशक्त बनाये जाने की भी योजना है। वर्तमान में कार्यरत वैसे स्कूल जहाँ शिक्षकों की संख्या अपर्याप्त है वहाँ अतिरिक्त शिक्षकों की व्यवस्था की जाएगी जबकि वर्तमान में कार्यरत शिक्षकों को गहन प्रशिक्षण प्रदान कर, शिक्षण-प्रवीणता सामग्री के विकास के लिए निधि प्रदान कर एवं टोला, प्रखंड, जिला स्तर पर अकादमिक सहायता संरचना को मजबूत किया जाएगा। सर्व शिक्षा अभियान जीवन-कौशल के साथ गुणवत्तायुक्त प्रारंभिक शिक्षा प्रदान करने की इच्छा रखता है। सर्व शिक्षा अभियान का बालिका शिक्षा और जरूरतमंद बच्चों पर खास जोर है। साथ ही, सर्व शिक्षा अभियान का देश में व्याप्त डिजिटल दूरी को समाप्त करने के लिए कंप्यूटर शिक्षा प्रदान करने की भी योजना है।

सर्व शिक्षा अभियान का उद्देश्य

  • सभी बच्चों के लिए वर्ष 2005 तक प्रारंभिक विद्यालय, शिक्षा गारंटी केन्द्र, वैकल्पिक विद्यालय, "बैक टू स्कूल" शिविर की उपलब्धता।
  • सभी बच्चे 2007 तक 5 वर्ष की प्राथमिक शिक्षा पूरी कर लें।
  • सभी बच्चे 2010 तक 8 वर्षों की स्कूली शिक्षा पूरी कर लें।
  • संतोषजनक कोटि की प्रारंभिक शिक्षा, जिसमें जीवनोपयोगी शिक्षा को विशेष महत्त्व दिया गया हो, पर बल देना।
  • स्त्री-पुरुष असमानता तथा सामाजिक वर्ग-भेद को 2007 तक प्राथमिक स्तर तथा 2010 तक प्रारंभिक स्तर पर समाप्त करना।
  • वर्ष 2010 तक सभी बच्चों को विद्यालय में बनाए रखना।

केन्द्रित क्षेत्र (फोकस एरिया)

  • वैकल्पिक स्कूली व्यवस्था
  • विशेष जरूरतमंद बच्चे
  • सामुदायिक एकजुटता या संघटन
  • बालिका शिक्षा
  • प्रारंभिक शिक्षा की गुणवत्ता

संस्थागत सुधार - सर्व शिक्षा अभियान के एक भाग के रूप में राज्यों में संस्थागत सुधार किए जाएंगे। राज्यों को अपनी मौजूदा शैक्षिक पद्धति का वस्तुपरक मूल्यांकन करना होगा जिसमें शैक्षिक प्रशासन, स्कूलों में उपलब्धि स्तर, वित्तीय मामले, विकेन्द्रीकरण तथा सामुदायिक स्वामित्व, राज्य शिक्षा अधिनियम की समीक्षा, शिक्षकों की नियुक्ति तथा शिक्षकों की तैनाती को तर्कसम्मत बनाना, मॉनीटरिंग तथा मूल्यांकन, लड़कियों, अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति तथा सुविधाविहीन वर्गो के लिए शिक्षा, निजी स्कूलों तथा ई.सी.सी.ई. संबंधी मामले शामिल होगें। कई राज्यों में प्रारंभिक शिक्षा प्रदान करने की व्यवस्था में सुधार के लिए संस्थागत सुधार भी किए गए हैं।

सतत वित्त पोषण - सर्व शिक्षा अभियान इस तथ्य पर आधारित है कि प्रारंभिक शिक्षा कार्यक्रम का वित्त पोषण सतत् जारी रखा जाए। केन्द्र और राज्य सरकारों के बीच वित्तीय सहभागिता पर दीर्धकालीन परिप्रेक्ष्य की अपेक्षा है।

सामुदायिक स्वामित्व - इस कार्यक्रम के लिए प्रभावी विकेन्द्रीकरण के जरिए स्कूल आधारित कार्यक्रमों में सामुदायिक स्वामित्व की अपेक्षा है। महिला समूह, ग्राम शिक्षा समिति के सदस्यों और पंचायतीराज संस्थाओं के सदस्यों को शामिल करके इस कार्यक्रम को बढ़ाया जाएगा।

संस्थागत क्षमता निर्माण - सर्व शिक्षा अभियान द्वारा राष्ट्रीय शैक्षिक योजना एवं प्रशासन संस्थान/ राष्ट्रीय शिक्षक शिक्षा परिषद्/राज्य शैक्षिक अनुसंधान व प्रशिक्षण परिषद्/सीमेट (एस.आई.ई.एम.ए.टी.) जैसी राष्ट्रीय एवं राज्यस्तरीय संस्थाओं के लिए क्षमता निर्माण की महत्वपूर्ण भूमिका की परिकल्पना की गयी है। गुणवत्ता में सुधार के लिए विशषज्ञों के स्थायी सहयोग वाली प्रणाली की आवश्यकता है।

शैक्षिक प्रशासन की प्रमुख धारा में सुधार - इसमें संस्थागत विकास, नयी पहल को शामिल करके और लागत प्रभावी और कुशल पद्धतियां अपनाकर शैक्षिक प्रशासन की मुख्य धारा में सुधार करने की अपेक्षा है।

पूर्ण पारदर्शिता युक्त सामुदायिक निरीक्षण - इस कार्यक्रम में समुदाय आधारित पद्धति अपनायी जायेगी। शैक्षिक प्रबंध सूचना पद्धति, माइक्रो योजना और सर्वेक्षण से समुदाय आधारित सूचना के साथ स्कूल स्तरीय आंकड़ों का संबंध स्थापित करेगा। इसके अतिरिक्त प्रत्येक स्कूल एक नोटिस बोर्ड रखेगा जिसमें स्कूल द्वारा प्राप्त किये गए सारे अनुदान और अन्य ब्यौरे दर्शाए जाएंगे।

योजना इकाई के रूप में बस्ती - सर्व शिक्षा अभियान आयोजना की इकाई के रूप में बस्ती के साथ योजना बनाते हुए समुदाय आधारित दृष्टिकोण पर कार्य करता है। बस्ती योजनाएं जिला की योजनाएं तैयार करने का आधार होंगी।

समुदाय के प्रति जवाबदेही - सर्व शिक्षा अभियान में शिक्षकों, अभिभावकों और पंचायतीराज संस्थाओं के बीच सहयोग तथा जवाबदेही एवं पारदर्शिता की परिकल्पना की गयी है।

लड़कियों की शिक्षा - लड़कियों विशेषकर अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति की लड़कियों की शिक्षा, सर्व शिक्षा अभियान का एक प्रमुख लक्ष्य होगा।

विशेष समूहों पर ध्यान - अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, धार्मिक एवं भाषाई अल्पसंख्यकों, वंचित वर्गो के बच्चों और विकलांग बच्चों की शैक्षिक सहभागिता पर विशेष ध्यान दिया जाएगा।

परियोजना पूर्व चरण - सर्व शिक्षा अभियान पूरे देश में सुनियोजित रूप से परियोजनापूर्व चरण प्रारम्भ करेगा जो वितरण और निरीक्षण (मॉनीटरिंग) पद्धति को सुधार कर क्षमता विकास के कार्यक्रम चलाएगा।

गुणवत्ता पर बल देना - सर्व शिक्षा अभियान पाठ्यचर्या में सुधार करके तथा बाल केन्द्रित कार्यकलापों और प्रभावी शिक्षण पद्धतियों को अपनाकर प्रारंभिक स्तर तक शिक्षा को उपयोगी और प्रासंगिक बनाने पर विशेष बल देता है।

शिक्षकों की भूमिका - सर्व शिक्षा अभियान, शिक्षकों की महत्वपूर्ण भूमिका को स्वीकार करता है और उनकी विकास संबंधी आवश्यकताओं पर ध्यान देने का समर्थन करता है। प्रखंड संसाधन केन्द्र/सामूहिक संसाधन केन्द्र की स्थापना, योग्य शिक्षकों की नियुक्ति, पाठ्यचर्या से संबंधित सामग्री के विकास में सहयोग के जरिये शिक्षक विकास के अवसर, शिक्षा संबंधी प्रक्रियाओं पर ध्यान देना और शिक्षकों के एक्सपोजर दौरे, शिक्षकों के बीच मानव संसाधन को विकसित करने के उद्देश्य से तैयार किए जाते हैं।

जिला प्रारम्भिक शिक्षा योजनाएँ - सर्व शिक्षा अभियान के कार्य ढाँचे के अनुसार प्रत्येक जिला एक जिला प्रारम्भिक शिक्षा योजना तैयार करेगा जो संकेद्रित और समग्र दृष्टिकोण से युक्त प्रारम्भिक शिक्षा के क्षेत्र में किए गए सभी निवेशों को दर्शाएगा।

जिला प्रारंभिक शिक्षा योजना - सर्व शिक्षा अभियान ढाँचा के अनुसार प्रत्येक जिला प्रारंभिक शिक्षा के क्षेत्र में समग्र एवं केन्द्रित दृष्टिकोण के साथ, निवेश किये जाने वाले और उसके लिए जरूरी राशि को प्रदर्शित करने वाली एक जिला प्रारंभिक शिक्षा योजना तैयार करेगी। यहाँ एक प्रत्यक्ष योजना होगी जो दीर्घावधि तक सार्वभौमिक प्रारंभिक शिक्षा के लक्ष्य को प्राप्त करने की गतिविधियों को ढ़ाँचा प्रदान करेगा। उसमें एक वार्षिक कार्ययोजना एवं बजट भी होगा जिसमें सालभर में प्राथमिकता के आधार पर संपादित की जाने वाली गतिविधियों की सूची होंगी। प्रत्यक्ष योजना एक प्रामाणिक दस्तावेज होगा जिसमें कार्यक्रम कार्यान्वयन के मध्य में निरन्तर सुधार भी होगा।

वित्तीय प्रतिमानक

  • सर्व शिक्षा अभियान के लिए केन्द्र और राज्य सरकारों के बीच वित्तीय भागीदारी नौवीं योजना अवधि के दौरान 85:15; दसवीं योजना में 75:25 तथा उसके बाद यह 50:50 की होगी। लागत को वहन करने की वचनबद्धता राज्य सरकारों से लिखित रूप में ली जाएगी। राज्य सरकारों को वर्ष 1999-2000 में प्रारम्भिक शिक्षा में किए जा रहे निवेश को बरकरार रखना होगा तथा सर्व शिक्षा अभियान  में राज्यांश इस निवेश के अतिरिक्त होगा।
  • भारत सरकार, राज्य कार्यान्वयन सोसाइटी को ही सीधे निधियां जारी करेगी तथा राज्य सरकार के हिस्से की कम से कम 50% राशि राज्य कार्यान्वयन सोसाइटियों को अंतरित करने तथा इस राशि के व्यय के बाद ही केन्द्र सरकार अगली किश्त जारी करेगी।
  • सर्व शिक्षा अभियान के अन्तर्गत नियुक्त किए गए शिक्षकों के वेतन में केन्द्र सरकार और राज्य सरकार की भागीदारी नौवीं योजना अवधि के दौरान 85:15 के अनुपात में, दसवीं योजना अवधि के दौरान 75:25 के अनुपात में तथा इसके बाद 50:50 के अनुपात में होगी।
  • बाह्य सहायता प्राप्त परियोजनाओं के संबंध में किए गए सभी विधिक समझौते लागू रहेंगे, जबतक कि विदेशी निधियां प्रदान करने वाली एजेंसी से विचार-विमर्श करके इसमें कोई विशिष्ट संशोधन करने पर सहमति नहीं हो जाती।
  • विभाग की मौजूदा योजनाएं राष्ट्रीय शिक्षक शिक्षा परिषद् के अलावा नौवीं योजना में मिला दी जाएंगी। प्राथमिक शिक्षा की राष्ट्रीय पोषाहार सहायता कार्यक्रम योजना (मध्याह्न भोजन योजना) एक विशिष्ट योजना के रूप में कायम रहेगी जिसमें खाद्यान्न एवं यातायात की लागत केन्द्र सरकार द्वारा वहन की जाएगी तथा भोजन पकाने की लागत राज्य सरकारों द्वारा वहन की जाएगी।
  • जिला शिक्षा योजना अन्य बातों के साथ-साथ यह स्पष्ट रूप से दर्शाती है कि जवाहर रोजगार योजना, प्रधानमंत्री रोजगार योजना, सुनिश्चित रोजगार योजना, सांसद/विधायक के लिए क्षेत्रीय निधियां, राज्य योजना जैसी योजनाएं तथा विदेशी निधियां तथा गैर सरकारी क्षेत्र में जुटाए गए संसाधन के अन्तर्गत विभिन्न घटकों से निधि / संसाधन उपलब्ध किए जाते हैं।
  • स्कूलों के स्तर में वृद्धि, रखरखाव, मरम्मत तथा अध्ययन-अध्यापन उपस्करों तथा स्थानीय प्रबंधन के लिए प्रयोग की जाने वाली सभी निधियां ग्रामीण शिक्षा समिति /स्कूल प्रबंधन समिति को हस्तांतरित कर दी जाएंगी।
  • अन्य प्रोत्साहन योजनाओं, जैसे छात्रवृतियां तथा वर्दियां  (स्कूल ड्रेस) प्रदान करने के लिए राज्य योजना के अन्तर्गत निधियां जारी की जाती रहेंगी। इन्हें सर्व शिक्षा अभियान से निधियां नहीं दी जाएंगी।

सर्व शिक्षा अभियान के अंतर्गत मध्यस्थता के प्रतिमानक

सर्व शिक्षा अभियान के अंतर्गत मुख्य वित्तीय प्रतिमानक हैं -

नियंत्रण प्रतिमानक
1.
शिक्षक

  • प्राथमिक और उच्च प्राथमिक विद्यालयों में प्रत्यक 40 बच्चों पर एक शिक्षक।
  • प्राथमिक विद्यालय में कम से कम दो शिक्षक।
  • उच्च प्राथमिक विद्यालय में प्रत्येक वर्ग के लिए एक शिक्षक।

2. स्कूल/वैकल्पिक सूकली सुविधा

  • प्रत्येक निवास स्थान / घर से एक किलोमीटर के भीतर ।
  • राज्य मानक के अनुसार और नये स्कूल खोलने या उन गाँवों या अधिवास क्षेत्रों में ईजीएस के समान स्कूल की स्थापना का प्रावधान।

3. उच्च प्राथमिक शिक्षा/क्षेत्र

  • आवश्यकता के अनुरूप, प्राथमिक शिक्षा पूरी कर रहे बच्चों की संख्या के आधार पर, प्रत्येक दो प्राथमिक विद्यालय पर एक उच्च प्राथमिक विद्यालय की स्थापना।

4. अध्ययन कक्ष (क्लास रूम)

  • प्रत्येक शिक्षक या प्रत्येक वर्ग या श्रेणी के लिए एक कक्ष, जो भी प्राथमिक या उच्च प्राथमिक स्कूल में नीचे हों, वहाँ इस प्रावधान के साथ कि प्रत्येक प्राथमिक विद्यालय में बरामदा सहित दो कक्ष के साथ दो शिक्षक का प्रावधान हों।
  • उच्च प्राथमिक विद्यालय या वर्ग में हेड मास्टर के लिए एक अलग कक्ष का प्रावधान।

5. निःशुल्क पाठ्यपुस्तक

  • प्रति बच्चे की अधिकतम सीमा के अंतर्गत प्राथमिक एवं उच्च प्राथमिक स्कूलों में पढ़ने वाले सभी  लड़कियों /अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति वर्ग के सभी बच्चों को निःशुल्क पुस्तकें।
  • निःशुल्क पाठ्यपुस्तक के लिए राज्यों द्वारा दी जा रही निधि वर्तमान में राज्य योजना के द्वारा प्रदान की जाती है।
  • यदि कोई राज्य प्रारंभिक वर्गों में बच्चों की दी जाने वाली पाठ्यपुस्तक के मूल्य पर आंशिक रूप से वित्तीय सहायता दे रही है तो ऐसी स्थिति में सर्व शिक्षा अभियान के तहत बच्चों द्वारा वहन की जा रही राशि का भाग, राज्यों को आर्थिक सहायता के रूप में देय नहीं  होगा।

6. सिविल कार्य

  • पीएबी द्वारा प्रत्यक्ष परियोजना के आधार पर, पूरी परियोजना अवधि वर्ष 2010 तक के लिए स्वीकृत निधि के अनुसार, सिविल कार्य के लिए कार्यक्रम निधि पूरी परियोजना लागत के 33 प्रतिशत की सीमा से अधिक नहीं होगा।
  • 33 प्रतिशत की इस सीमा में,  भवन के मरम्मत व देखभाल पर होने वाला खर्च शामिल नहीं होगा।
  • हालांकि, किसी खास वर्ष में वार्षिक योजना के 40 प्रतिशत तक सिविल कार्य के लिए स्वीकार किया जा सकता, बशर्ते कि उस वर्ष कार्यक्रम के विभिन्न घटक को पूरा करने के लिए खर्च निर्धारित किया गया हो। लेकिन यह खर्च पूरी परियोजना के 33 प्रतिशत के सीमा के अंतर्गत होगी।
  • स्कूली सुविधा में सुधार, प्रखंड संसाधन केन्द्र/टोला संसाधन केन्द्र के निर्माण  के लिए।
  • टोला संसाधन केन्द्र का उपयोग अतिरिक्त कक्ष के रूप में किया जा सकता है।
  • कार्यालय भवन के निर्माण पर होने वाले किसी खर्च का वहन नहीं किया जायेगा।
  • जिला, आधारभूत संरचना का योजना तैयार करेगी।

7. स्कूल भवन की देखभाल एवं मरम्मत

  • केवल स्कूल प्रबंधन समिति/ग्राम शिक्षा समिति के माध्यम से।
  • स्कूल समिति के विशिष्ट प्रस्ताव के अनुसार प्रति वर्ष 5 हजार रुपये तक।
  • सामुदायिक सहायता के तत्व अवश्य शामिल हों।
  • भवन की देखभाल और मरम्मत पर की गई खर्च को, सिविल कार्य के लिए निर्धारित 33 प्रतिशत की सीमा रेखा के भीतर गणना करते समय, शामिल नहीं की जाएगी।
  • निधि केवल उन स्कूलों के लिए उपलब्ध होगी जिनका तत्समय अपना भवन उपलब्ध हों।

8. राज्य प्रतिमानक के अनुसार ईजीएस का नियमित स्कूल में उन्नयन या नये प्राथमिक स्कूल की स्थापना

  • प्रति स्कूल 10 हजार रुपये की दर से टीएलई का प्रावधान।
  • स्थानीय संदर्भ एवं जरूरत के अनुसार टीएलई।
  • टीएलई का चयन एवं अर्जन में शिक्षक एवं अभिभावक की संलग्नता जरूरी।
  • अर्जन के सर्वश्रेष्ठ तरीका का निर्णय ग्राम शिक्षा समिति/स्कूल-ग्राम स्तरीय वैध निकाय निर्णय लेगी।
  • ईजीएस केन्द्र के उन्नयन से पहले उसका दो वर्ष तक सफलतापूर्वक कार्य संचालन जरूरी।
  • शिक्षक और कक्ष के लिए प्रावधान।

9. उच्च प्राथमिक विद्यालय के लिए टीएलई

  • अनाच्छादित स्कूल के लिए, 50 हजार रुपये प्रति स्कूल की दर से।
  • स्थान विशेष के जरूरत के अनुरूप, जिसका निर्धारण शिक्षक/स्कूल समिति करेगी।
  • विद्यालय समिति, शिक्षकों के परामर्श से अर्जन के सर्वश्रेष्ठ तरीकों का निर्णय करेगी।
  • यदि वित्तीय लाभ हो तो स्कूल समिति, जिला स्तरीय अर्जन की सिफारिश कर सकती है।

मध्यस्थता प्रतिमानक

10. स्कूल निधि

  • अकार्यशील स्कूल उपकरण को बदलने के लिए, प्रति वर्ष 2 हजार रुपये की दर से  प्रत्येक प्राथमिक /उच्च प्राथमिक विद्यालय के लिए।
  • उपयोग में पारदर्शिता।
  • केवल ग्राम शिक्षा समिति / एस.एम.सी. के द्वारा खर्च।

11. शिक्षक निधि

  • प्राथमिक और उच्च प्राथमिक विद्यालय में प्रतिवर्ष, प्रति शिक्षक 500 रुपये।
  • उपयोग में पारदर्शिता।

12. शिक्षक प्रशिक्षण

  • प्रत्येक वर्ष सभी शिक्षक के लिए 20 दिन का सेवाकाल पाठ्यक्रम का प्रावधान, पहले से ही नियुक्त अप्रशिक्षित शिक्षक के लिए 60 दिन  का रिफ्रेशर पाठ्यक्रम और नये प्रशिक्षित नियुक्त शिक्षक के लिए 30 दिन का 70 रुपये की दर से अभिसंस्करण (ओरिएंटेशन) कार्यक्रम।
  • इकाई लागत सूचक है, जो गैर आवासीय प्रशिक्षण कार्यक्रम में कम होगा।
  • सभी प्रशिक्षण लागत शामिल होगा।
  • मूल्य निरूपण के दौरान प्रभावी प्रशिक्षण के लिए क्षमता का मूल्यांकन, विस्तार के सीमा का निर्धारण करेगी।
  • वर्तमान शिक्षक शिक्षा योजना के तहत एस.सी.ई.आर.टी/डी.आई.ई.टी के लिए सहायता।

13. राज्य शैक्षिक संस्थान

  • प्रबंधन एवं प्रशिक्षण (एस.आई.ई.एम.ए.टी)।
  • 3 करोड़ रुपये तक एक बार सहायता।
  • राज्यों का, संस्थान को बनाये रखने/उसे सुस्थिर रखने पर, सहमत होना जरूरी।
  • विषय शिक्षकों की नियुक्ति प्रक्रिया/शर्तें कठोर होंगी।

14. सामुदायिक नेताओं का प्रशिक्षण

  • साल में 2 दिन गाँव के अधिकतम 8 लोगों (महिलाओं  को प्राथमिकता) को।
  • प्रति व्यक्ति 30 रुपये प्रति दिन की दर से।

15. विकलांगों के लिए प्रावधान

  • विशेष प्रस्ताव के अनुसार, विकलांग बच्चों को शामिल करने के लिए प्रति वर्ष 1200 रुपये तक प्रति बच्चे।
  • 1200 रुपये प्रति बच्चे के प्रतिमानक के तहत, विशेष रूप से जरूरतमंद बच्चों के लिए जिला योजना।
  • संसाधन संस्थान की संलग्नता को बढ़ावा दिया जायेगा।

16. शोध, मूल्यांकन, निरीक्षण एवं संचालन

  • प्रति वर्ष, प्रत्येक स्कूल को 1500 रुपये तक।
  • शोध एवं संसाधन संस्थान के साथ सहभागिता, राज्य विशेष पर जोर के साथ संसाधन टीम का संघ निर्माण।
  • संसाधन/शोध संस्थान के माध्यम से मूल्य निर्धारण और निरीक्षण के लिए और प्रभावी  ई.एम.आई.एस. के लिए क्षमता विकास को प्राथमिकता।
  • परिवार संबंधी आँकड़ों को अद्यतन करने के लिए नियमित स्कूल चित्रण/ लघु आयोजना का प्रावधान।
  • संसाधन व्यक्ति का संघ का निर्माण कर, संसाधन व्यक्ति द्वारा किये गये निरीक्षण (मॉनिटरींग), समुदाय आधारित आँकड़े का निर्माण, शोध अध्ययन, मूल्याँकन लागत और मूल्य निर्धारण की शर्ते, उनके क्षेत्र गतिविधियाँ और कक्षा निरीक्षण के लिए यात्रा भत्ता और मानदेय का प्रावधान।

मध्यस्थता प्रतिमानक

  • संपूर्ण रूप से प्रति स्कूल के लिए आवंटित बजट के आधार पर, राष्ट्रीय, राज्य, जिला, उप जिला एवं स्कूल स्तरीय खर्च किया जायेगा।
  • राष्ट्रीय स्तर पर प्रति स्कूल प्रत्येक वर्ष 100 रुपये खर्च किया जायेगा।
  • राज्य/जिला/प्रखंड संसाधन केन्द्र/टोला संसाधन केन्द्र/विद्यालय स्तरीय खर्च का निर्धारण राज्य/केन्द्र शासित क्षेत्र द्वारा किया जायेगा। इसमें मूल्य के निर्धारण, निरीक्षण, एम.आई.एस. , कक्षा निरीक्षण आदि का खर्च भी शामिल होगा। शिक्षक शिक्षा योजना के तहत, एस.सी.ई.आर.टी को प्रस्ताव के बराबर और अधिक सहायता भी प्रदान किया जा सकता है।
  • राज्य विशेष में जिम्मेदारी लेने को तैयार संसाधन संस्थान को शामिल करना।

17. प्रबंधन लागत

  • जिला योजना के बजट के 6 प्रतिशत से अधिक नहीं।
  • इसमें कार्यालय खर्च, कार्यरत मानवशक्ति, पी.ओ.एल. आदि के मूल्यांकन के बाद विभिन्न स्तर पर विशेषज्ञों की भर्ती आदि का खर्च शामिल।
  • एम.आई.एस., सामुदायिक योजना प्रक्रिया, सिविल कार्य, लिंग आदि के विशेषज्ञों को प्राथमिकता।

खास जिला में उपलब्ध क्षमता पर निर्भर

  • प्रबंधन लागत का उपयोग राज्य/जिला/प्रखंड/टोला स्तर पर प्रभावी टीम के विकास पर किया जाना चाहिए।
  • पूर्व परियोजना चरण में ही प्रखंड संसाधन केन्द्र/टोला संसाधन केन्द्र के लिए कार्मिकों के पहचान को प्राथमिकता दी जानी चाहिए ताकि वृहद् प्रक्रिया आधारित आयोजना के लिए टीम उपलब्ध हो।

18. बालिका शिक्षा, प्रारंभिक बाल देखभाल व शिक्षा
अनुसूचित जाति /जनजाति समुदाय के बच्चों के लिए मध्यस्थता, विशेष रूप से उच्च प्राथमिक स्तर पर सामुदायिक कंप्यूटर शिक्षा के लिए नवीन गतिविधि/कार्य।

  • प्रत्येक नवीन परियोजना के लिए 15 लाख रुपये तक और जिला के लिए प्रत्येक वर्ष 50 लाख रुपये का प्रावधान सर्व शिक्षक्षा अभियान पर लागू होगा।
  • ई.सी.सी.ई. और बालिका शिक्षा मध्यस्थता के लिए ईकाई लागत पहले से ही चल रही योजना के अंतर्गत स्वीकृत है।

19. प्रखंड/टोला संसाधन केन्द्र

  • सामान्यतया प्रत्येक सामुदायिक विकास प्रखंड में एक प्रखंड संसाधन केन्द्र होगा। फिर भी, ऐसे राज्य जहाँ शैक्षिक प्रखंड या अंचल के समान उप जिला शैक्षिक प्रशासनिक संरचना के क्षेत्राधिकार की सीमा, सामुदायिक विकास प्रखंड से मेल नहीं खाती हो, तो राज्य उस उप जिला शैक्षिक प्रशासन इकाई में प्रखंड संसाधन केन्द्र का प्रावधान कर सकता है। हालाँकि, वैसी स्थिति में, सामुदायिक विकास प्रखंड में प्रखंड संसाधन केन्द्र/टोला संसाधन केन्द्र पर होने वाले पूरे खर्च, आवर्तक एवं अनावर्तक दोनों, उस सामुदायिक विकास प्रखंड में एक प्रखंड संसाधन केन्द्र खोले जाने के लिए स्वीकृत बजट से अधिक नहीं होगा।
  • जहाँ तक संभव हो प्रखंड संसाधन केन्द्र/टोला संसाधन केन्द्र स्कूल प्रांगण में स्थित होंगे।
  • जहाँ जरूरी हो प्रखंड संसाधन केन्द्र भवन निर्माण के लिए 6 लाख की सहायता।
  • जहाँ जरूरी हो टोला संसाधन केन्द्र भवन निर्माण के लिए 2 लाख रुपये। इस भवन का उपयोग विद्यालय में अतिरिक्त कक्ष के रूप में किया जाना चाहिए।
  • किसी भी वर्ष में, किसी भी जिले में,  कार्यक्रम के अंतर्गत पूरे प्रस्तावित खर्च का 5 प्रतिशत से अधिक, गैर विद्यालय (प्रखंड संसाधन केन्द्र/टोला संसाधन केन्द्र) निर्माण पर खर्च  नहीं होना चाहिए।

मध्यस्थता प्रतिमान

  • प्रखंड के 100 से अधिक स्कूलों में 20 शिक्षकों की तैनाती, छोटे प्रखंड के प्रखंड संसाधन केन्द्र/टोला संसाधन केन्द्र में 10 शिक्षक एक साथ रखे जायेंगे।
  • प्रत्येक प्रखंड संसाधन केन्द्र के लिए कुर्सी आदि के लिए 1 लाख रुपये तथा टोला संसाधन केन्द्र के लिए 10 हजार रुपये का प्रावधान।
  • प्रतिवर्ष प्रखंड संसाधन केन्द्र के लिए 12,500 रुपये तथा टोला संसाधन केन्द्र के लिए 2500 रुपये की आकस्मिक निधि।
  • बैठक व यात्रा भत्ता हेतु प्रखंड संसाधन केन्द्र के लिए 500 रुपये व टोला संसाधन केन्द्र के लिए 200 रुपये प्रतिमाह।
  • प्रखंड संसाधन केन्द्र के लिए 5 हजार रुपये व टोला संसाधन केन्द्र के लिए 1 हजार रुपये प्रति वर्ष टी.एल.एम. निधि।
  • प्रारंभिक चरण में ही गहन चयन प्रक्रिया के बाद प्रखंड संसाधन केन्द्र/टोला संसाधन केन्द्र कार्मिक की पहचान।

स्कूल से बाहर रहने वाले बच्चों के लिए मध्यस्थता

शिक्षा गारंटी योजना और वैकल्पिक व नवीन शिक्षा के अंतर्गत पहले से स्वीकृत प्रतिमानक के अनुसार निम्नलिखित प्रकार के लिए मध्यस्थता प्रदान किये जा रहे हैं -

  • दूर-दराज में स्थित निवासों या क्षेत्रों में शिक्षा गारंटी केन्द्र की स्थापना।
  • अन्य वैकल्पिक स्कूली ढाँचा की स्थापना।
  • स्कूल से बाहर रहने वाले बच्चे को नियमित विद्यालय की ओर लाने का मुख्य लक्ष्य बनाकर ब्रिज पाठ्यक्रम, उपचारी पाठ्यक्रम, बैक टू स्कूल कैम्प का आयोजन।

21. लघु आयोजन, घर सर्वेक्षण, अध्ययन, सामुदायिक गतिशीलता, स्कूल आधारित गतिविधियाँ, कार्यालय उपकरण, प्रशिक्षण एवं ओरिएंटेशन कार्य के लिए सभी स्तर पर प्रारंभिक गतिविधियाँ।

जिला के विशेष प्रस्ताव के अनुसार, उसके लिए राज्य सिफारिश भेजेगी। शहरी क्षेत्र में, जिला के भीतर या महानगरीय क्षेत्र को जरूरत के मुताबिक आयोजना के लिए एक अलग ईकाई के रूप में माना जायेगा।

सर्व शिक्षा अभियान में ग्राम शिक्षा समिति की भूमिका

सर्व शिक्षा अभियान सरकार की एक महत्वाकांक्षी योजना है। सर्व शिक्षा अभियान के घोषित लक्ष्य के अनुसार एक निश्चित समय सीमा के अन्दर सभी बच्चों का शत–प्रतिशत नामांकन, ठहराव तथा गुणवत्तता युक्त प्रांरभिक शिक्षा सुनिश्चित करना है। साथ ही सामाजिक विषमता तथा लिंग भेद को भी दूर करना है।

उक्त सभी मुद्दे समुदाय से जुड़ें है। यानी समुदाय को उस बारे बताये बिना तथा उन्हें कार्यक्रम से जोड़े बिना लक्ष्य की प्राप्ति नहीं की जा सकती। इसलिए सर्व शिक्षा अभियान के अन्तर्गत सामुदायिक सहभागिता की अनिवार्यता को जोरदार ढंग से रखा गया है। इसमें ऐसी व्यवस्था की गई है जिसमें प्राथमिक तथा मध्य विद्यालयों का स्वामित्व समुदाय के पास हो तथा इन विद्यालयों को कुछ हद तक पंचायतों के प्रति जिम्मेदार बनाया जाये। सामुदायिक भागीदारी को सुनिश्चित करने के लिए भी इसमें कई व्यवस्था की गई है। प्रत्येक विद्यालय में ग्राम शिक्षा समिति का गठन एक ऐसी ही व्यवस्था है। सर्व शिक्षा अभियान में कार्यक्रम कार्यान्वयन के प्रबंधकीय ढाँचा के अन्तर्गत ग्राम शिक्षा समिति को महत्वपूर्ण स्थान दिया गया है और इस विकेन्द्रीकृत प्रबंधकीय व्यवस्था के अन्तर्गत ग्राम समिति को महत्वपूर्ण जिम्मेदारी सौंपी गई है।

ग्राम शिक्षा समिति का संगठनात्मक स्वरुप

ग्राम शिक्षा समिति ग्राम स्तर पर गठित एक छोटा संगठनात्मक ईकाई है जो खासकर प्राथमिक शिक्षा के प्रसार के प्रति समर्पित है। यह समिति 15 या 21 सदस्यों का एक संगठन है जिसका गठन प्रत्येक प्राथमिक विद्यालय एवं प्राथमिक कक्षा युक्त मध्य विद्यालय के लिए किया जाता है। सम्बन्धित विद्यालय के प्रधानाध्यापक ही इस समिति के पदेन सचिव होते हैं।

ग्राम शिक्षा समिति

अनु.ज.जा.वर्ग

महिला वर्ग

अन्य वर्ग

प्रावधान

(कुल सदस्यों का कम से कम आधा अनु.ज.जा )

(कुल सदस्यों का कम आधा से कम एक तिहाई महिला)

(कुल सदस्यों का कम आधा से कम एक तिहाई अन्य)

(क) कुल 15 सदस्य

पुरुष-5
महिला – 3

महिला-5 (अनुसूचित जनजाति वर्ग की 3 महिला सदस्य मिलाकर)

1+4

(ख) कुल 21 सदस्य

पुरुष-6
महिला – 5

महिला-7 (अनुसूचित जनजाति वर्ग की 5 महिला सदस्य मिलाकर)

1+6

ग्राम शिक्षा समिति का उद्देश्य:
प्राथमिक शिक्षा का सर्वव्यापीकरण एक व्यापक लक्ष्य है। इस लक्ष्य की प्राप्ति के लिये भागीदारी एवं लोक सशक्तीकरण आवश्यक है। प्रत्येक प्राथमिक विद्यालय एवं प्राथमिक कक्षा सहित मध्य विद्यालयों में ग्राम शिक्षा समिति का गठन एक ऐसा उपाय है जो जनभागीदारी एवं लोक सशक्तीकरण के लक्ष्य को पूरा करेगी। इसके अलावा ग्राम शिक्षा समिति के निम्नलिखित उद्देश्य हैं-

  • गाँव में प्राथमिक शिक्षा के विकास से अभिरुचि रखने वाले समर्पित एवं समय देने वाले व्यक्तियों को इसमें शामिल होने का अवसर देना।
  • सम्बन्धित विद्यालय के संस्थागत चरित्र को उभारकर शत-प्रतिशत नामांकन, ठहराव एवं उपलब्धि स्तर को अनवरत बनाए रखना।
  • समुदाय के अभिवंचित वर्गो, यथा- महिला, अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, मजदूर, किसान, पिछड़ों को समुचित प्रतिनिधित्व देकर समाज के मुख्य धारा से जोड़ना ताकि साझा हितों की रक्षा के लिये उन्हें भी निर्णय लेने का अधिकार प्राप्त हो।

ग्राम शिक्षा समिति का कार्यकाल:

  • ग्राम शिक्षा समिति का कार्यकाल सामान्यत: तीन वर्षों का है
  • अगर ग्राम शिक्षा समिति के कार्यों से / निष्क्रियता से अभिभावक असन्तुष्ट हो तो विद्यालय में नांमाकित कम से कम 50 प्रतिशत बच्चों के अभिभावक की शिकायत पर आम सभा / ग्राम सभा द्वारा समिति को बीच में ही भंग कर नई समिति का गठन किया जा सकता है। एक सफल आम सभा में 80 प्रतिशत अभिभावकों की उपस्थिति होनी चाहिये।
  • तीसरे वर्ष के अंतिम तीन महीने में आम सभा द्वारा नई समिति का गठन नियमानुसार अनिवार्य रुप से करा लिया जाये।

ग्राम शिक्षा समिति के कार्य एवं दायित्व

  • ग्राम शिक्षा समिति प्राथमिक शिक्षा के सार्वजनीकरण करने की दिशा में अपने गाँव के स्कूल के विकास हेतु हर संभव कार्य सम्पन्न कर सकती है। ग्राम शिक्षा समिति के सहयोग के बिना सार्वजनीकरण के लक्ष्य को कतई प्राप्त नहीं किया जा सकता। अपने गाँव,समाज एवं परिवार के विकास की जड़ शिक्षा में ही हैं। अत: शिक्षा को जन-जन तक पहुँचाकर राष्ट्रीय हित के इतने महान कार्य को सम्पन्न करने का दायित्व ग्राम शिक्षा समिति को ही प्रप्त है। जैसे:--

प्राथमिक शिक्षा का सार्वजनीकरण

  • 6 से 11 वर्ष के सभी बच्चे - बच्चियों का नामांकन विद्यालय में करना।
  • सभी नामांकित बच्चे-बच्चियों को विद्यालय में बनाये रखना, इसके लिए सभी संभव प्रयास करना
  • उपलब्धि स्तर में वृद्धि हेतु प्रयास करना।
  • बच्चे नियमित रूप से स्कूल आ रहें हैं या नहीं, इसका देखभाल नियमित रूप से करना।  इसके लिए प्रति दिन ग्राम शिक्षा समिति के दो अलग अलग सदस्यों को जिम्मेवारी सौंपना अच्छा है। उसके ऊपर भी अध्यक्ष एवं सचिव निगरानी रखें और अनुपस्थिति के कारणों का पता लगाकर उसका निदान खोजें।
  • माता शिक्षक समिति / अभिवाक शिक्षक समिति का गठन किया जाए ताकि ग्राम शिक्षा समिति के कार्यो में मदद मिल सके।
  • विद्यालय प्रबंधन में भागीदारी निभाना।
  • मुफ्त पाठ्य-पुस्तक के वितरण की अच्छी तरह देखभाल करना।
  • गाँव के दुर्बल एवं अपंग बच्चों का नामांकन करवाना
  • विद्यालय में अच्छी पढ़ाई प्रतिदिन सुचारु ढंग से चले इसके लिए हर संभव व्यवस्था करना
  • विद्यालय में मिल-जुलकर समारोह आयोजन करना
  • ग्राम शिक्षा समिति के निर्णयों के आलोक में विद्यालय कोष का संचालन करना
  • विद्यालय विकास एवं शैक्षणिक माहौल बनाने के लिए हरसंभव वित्तीय एवं गैर वित्तीय उपायों को सम्पादित करना
  • ग्राम शिक्षा योजना का निर्माण एवं इसका क्रियान्वयन करना आदि।

अध्यक्ष के कार्य एवं दायित्व

  • मासिक बैठक की अध्यक्षता करना
  • मासिक बैठक के आयोजन हेतु सचिव को सही समय पर सही परामर्श देना
  • बैठक में सभी सदस्यों की उपस्थिति सुनिश्चित करना
  • विद्यालय में नियमित पढ़ाई की व्यवस्था सुनिश्चित करना
  • सचिव के साथ विद्यालय कोष का संचालन करना
  • आमसभा को सफलतापूर्वक सम्पन्न कराने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाना एवं इसका कार्यभार ईमानदारी पूर्वक सभी सदस्यों पर सौंपना
  • मासिक बैठक में सर्वसम्मति से लिए जाने वाले निर्णयों में महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह करना
  • कार्यवाही पुस्तिका लिखना एवं प्रत्येक बैठक की कार्यवाही का अगले बैठक में सम्पुष्टि करवाना।
  • ग्राम शिक्षा योजना का क्रियान्वयन का अनुश्रवन (देख – रेख) एवं अनुगमन करना।

उपाध्यक्ष के कार्य एवं दायित्व

  • अध्यक्ष की अनुपस्थिति में बैठक की अध्यक्षता करना
  • वित्तीय कार्यो को छोड़कर अध्यक्ष की अनुपस्थिति में उनके सभी कार्यो का  सफलतापूर्व सम्पादन करना
  • सभी महत्वपूर्ण निर्णयों एवं कार्य –सम्पादन में अध्यक्ष के सहयोगी के रूप में कार्य करना

सचिव के कार्य एवं दायित्व

  • अध्यक्ष के परामर्श से मासिक बैठक बुलाने की कार्यवाही करना
  • बैठक के निर्णयों के क्रियान्वयन में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करना
  • अध्यक्ष के साथ मिलकर विद्यालय कोष का संचालन करना एवं लेखा-जोखा को कार्यवाही में प्रस्तुत करना
  • मासिक बैठक में विद्यालय सुधार योजना प्रस्तुत करना एवं ग्राम शिक्षा योजना का  निर्माण एवं क्रियान्वयन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाना
  • बच्चों का शत-प्रतिशत नामांकन एवं उपस्थिति सुनिश्चित करना एवं ग्राम शिक्षा समिति के माध्यम से क्रियान्वित करना।
  • ग्राम शिक्षा समिति के नाम से बैंक- खाता खुलवाना एवं अध्यक्ष एवं सचिव सह प्रभारी अध्यापक के संयुक्त हस्ताक्षर से खाता संचालन हो,  इसे सुनिश्चित करना।

स्त्रोत: सर्व शिक्षा अभियान अधिसूचना, भारत सरकार

Last Modified : 2/21/2020



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