सांस लेने के तन्त्र के काम
- शरीर के बढ़ने ओर विकास के लिए दूसरे अंगों तक आक्सीजन पहुँचाना और अंगों से जहरीली वायु कार्बनडाइक्साइड को बाहर ले आना
- नाक से हवा हम लेते हैं नाक उसे थोड़ी गरम और नरम बनाती है|
- नाक से गला तक आने के बाद नली दो भागों में बंट जाती है- एक बायीं ओर एक दायी
- ये दोनों नलियां आगे छोटी-छोटी नलियों में बंट जाती है|
- अगर इन नलियों में किसी तरह कि रुकावट होती है तो हमें बहुत तकलीफ होती है
- जब किसी नली में छूत लगती है तो ढेर सारा बलगम और कफ तैयार होता है
- सांस के साथ ही बलगम, कफ, बिना पचा खाना, पानी भी बाहर निकल जाता है|
- फेफड़ों कि बनावट हवा अन्दर और बाहर ले जाने वाली नलियों से बनता है
- दोनों फेफड़े छाती के अन्दर रहते हैं, उनके बचाव के लिए नलियों के चारों तरफ पसलियां रहती हैं|
सांस की नलियों की समस्याएं
दमा
- यह रोग फेफड़ों पर असर डालती हैं
- दमा के कारण नलियां सिकुड़ जाती हैं, उनमे सूजन भी आ सकती है और मोटा बलगम जमा हो जाता है|
- इस कारण रोगी को सांस लेने में तकलीफ होती है|
- दमा का रोगी जब सांस लेता है तो फेफड़े के हंसली और पसली के बीच कि चमड़ी अन्दर कि ओर धंस जाती है|
- यह जब सांस छोड़ता है तो सीटी कि आवाज निकलती है
- फेफड़ों को पूरी हवा न मिलने पर रोगी के नाख़ून और होंठ नीले पड़ जाते हैं
- दमा ज्यादातर बचपन में ही शुरू हो जाता है, पर यह जिन्दगी भर शरीर में बना रहता है
- हालांकि यह रोग छुतहा नहीं है फिर भी यह माता-पिता के दमा होने के बाद बच्चे को भी सम्भावना हो जाती है|
- कुछ खास चीजों कि खाने या सूंघने से दमा का दौरा शुरू हो जाता है|
उपचार
- अगर घर के अन्दर दमें का दौरा शुरू है तो उसे व्यक्ति को खुले में बाहर ले जाना चाहिए
- ऐसी चीजों को न खाएं न सूंघे जिससे दमा का दौर शुरू हो जाता है|
- व्यक्ति को पानी और दूसरी तरल चीजें देनी चाहिए इससे बलगम ढीला पड़ता है और जल्दी बाहर निकल जाता है|
- खौलते पानी का भाप नाक-मुंह से लेने से भी आराम मिलता है|
- कभी-कभी पेट में कीड़े पड़े रहने से भी दमा का रोग होता है|
- दमा रोग जिन्दगी भर चलता है, डाक्टर द्वारा दी गयी दवाओं को हमेशा अपने पास रखें
- डाक्टर कि सलाह लेते रहें
सांस के नली कि शोथ (ब्रोंकैतिस)
- सांस लेने वाली नलियों को छूत लगने से यह शोथ होता है|
- इसमें काफी आवाज वाली खांसी आती है, अक्सरहां बलगम भी निकलता है
- बिगड़ने पर रोगी को न्यूमोनिया भी हो सकता है|
लक्षण
- बलगम वाली खांसी साल भर में तीन महीने रहती है, और हर साल आती है
- ज्यादा खांसी के साथ बुखार भी हो सकता है
- बीड़ी, सिगरेट, हुक्का पीने वाले लोगों में यह रोग ज्यादा होती है|
उपचार
- डाक्टर से दिखाकर शोथ दूर करने वाली दवा लें|
फेफड़े का फोड़ा
- नालियों में छूत लगने पर फेफड़ों में घाव हो जाता है
- घाव के पीब फेफड़े में जमा होती है और व्यक्ति खांस कर उसे बलगम कि तरह निकालता है|
- यह खतरनाक रोग है, छूत के कारण पूरे फेफड़े पर रोग का असर होता है|
लक्षण
- खांसी के साथ गाढ़ा, पीला, बदबूदार बलगम निकलना
- तेज बुखार जो दिन में एक बार पसीने के साथ कम हो जाता
- नब्ज तेज चलती है
- व्यक्ति काफी बीमार दिखाई देता है|
उपचार
- पेंसिलिन कि सुई, डाक्टर कि राय लेकर
- बुखार के लिए गोलियां
- नाक और मुहं से भाप लें
निमोनिया
- निमोनिया फेफड़ों का खतरनाक छूत है
- यह अक्सरहां खसरा, काली खांसी, फ्लू, दमा रोगों के बाद होता है
- बच्चों के लिए यह रोग बहुत ही खतरनाक होता है
- अधिक उम्र वालों और एड्स के रोगियों को भी निमुनिया हो सकता है
लक्षण
- तेज और छोटी-छोटी सांस
- गले में घरघराहट
- नाक के नथुने हर सांस के साथ फ़ैल जाते हैं
- खांसी साथ में खून से सनी बलगम
- तेज बुखार
- होंट या चेहरे पर छालों का निकलना
उपचार
- डाक्टर से पूछ कर पेंसिलिन के इंजेक्सन
- बुखार और दरद को कम करने वाली गोलियां
- काफी मात्रा में पानी और दूसरे तरल चीजें पीने को देना
फेफड़े का कैंसर
- यह बीमारी पचास से पैसठ साल के लोगों में होती है
- सिगरेट, बीड़ी, हुक्का का सेवन इसका मुख्य कारण है
लक्षण
- खून भरी खांसी
- सांस लेने में कठिनाई
- बुखार
उपचार
- डाक्टरों कि देख-रेख में इलाज एवं दवा का सेवन एवं बताए गए परहेज
स्त्रोत: संसर्ग, ज़ेवियर समाज सेवा संस्थान
Last Modified : 2/21/2020
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