लाख एक बहुपयोगी राल है, जो एक सूक्ष्म कीट का दैहिक स्राव है। लाख के उत्पादन करने के लिए पोषक वृक्षों जैसे कुसूम,पलास व बेर अथवा झाड़ीदार पौधों जैसे भालिया की आवश्यकता पड़ती है। हमारे देश में पैदा होने वाली लाख का लगभग 60 प्रतिशत हिस्सा झारखण्ड राज्य से प्राप्त होता है। छत्तीसगढ़ व पश्चिम बंगाल, अन्य प्रमुख लाख उत्पादन राज्य हैं। महाराष्ट्र, उड़ीसा मध्यप्रदेश और असम के कुछ क्षेत्रों में भी लाख की खेती की जाती है।
लाख उत्पादन क्षेत्रों की अधिकतर भूमि पठारी व बंजर होने के कारण खेती के साधन सीमित है। साल में सिर्फ एक ही फसल मिल पाती है क्योंकी सिंचाई की सुविधा बहुत ही कम है। ऐसी परिस्थितियों में किसानों को अन्य वन – उत्पादों पर निर्भर रहना पड़ता है। विश्व की समस्त जनसंख्या का सोलहवां भाग एवं प्राकृतिक संसधानों का मात्र 2.4 प्रतिशत भारत में होने के कारण इसके प्राकृतिक संसाधनों पर भारी दबाव है।
एक अरब की आबादी का आंकड़ा पर करने वालों में चीन को छोड़कर भारत अकेला देश है। विकासशील देशों का छठा भाग कुपोषण का शिकार है एवं विश्व के एक चौथाई भूखे व दरिद्र यहीं पर है। लाख की खेती से जुड़े ज्यादातर आदिवासी परिवारों की हालत तो और भी बदतर है। इन परिस्थितियों में अपने आर्थिक स्थिति में सुधार लाकर आत्मनिर्भर बनाने में लाख की खेती अहम भूमिका निभाती है। लाख उत्पादकों के ले लाख से प्रप्त आय नगद आमदनी का अतिरिक्त स्रोत है। एक सर्वेक्षण के अनुसार झारखण्ड राज्य में राँची जिले के किसानों को कृषि से होने वाली आय में धन खेती को छोड़कर सबसे अधिक फायदा लाख की खेती से ही होता है। उन्हें अपनी कूल कृषि आय का लगभग 28 प्रतिशत हिस्सा लाख की खेती मिलता है। देश के लगभग 30-40 लाख परिवार लाख की खेती से जुड़े हैं, जाहिर है कि इसमें महिलाओं की भी अहम भूमिका होती है। अपने पति पर कमाई का बोझ कम करने के लिए महिलाएं अतिरिक्त आय के साधनों में जुटी हुई है।
लाख की खेती में की जाने वाली प्रक्रियाओं में सबसे पहले वृक्षों की काट-छांट करनी होती है। चूंकि इसके लिए वृक्षों पर चढ़ना पड़ता है इसलिए यह कार्य ज्यादातर पुरूष करते हैं। परन्तु कीट संचारण के लिए बिहनलाख के बंडल बनाना, इन्हें नाईलान जाली की थैली में भरना, फूंकी लाख को छीलना इत्यादि कार्य महिलाएँ करती है। इसी प्रकार फसल कटाई के बाद लाख लगी डालियों को इकट्ठा करने, अच्छे बीहनलाख को चुनना तथा फिर टहनी से लाख को छुड़ाने का काम भी महिलाओं द्वारा ही किया प्रतिशत काम महिलाएं ही करती हैं या कर सकती हैं।
लाख की खेती इतनी आसान है कि यदि महिलाएँ चाहें तो अपने बूते पर लाख की खेती खुद भी कुशलतापूर्वक कर सकती है। कुछ कार्यों जैसे वृक्षों को कलम करना, फसल काटना तथा कीटनाशक दवा का छिड़काव करना, जिनके लिए पेड़ पर चढ़ने की जरूरत पड़ती है, को छोड़कर लाख की खेती का बाकी सारा काम महिलाएं कर सकती हैं। कुछ ग्रामीण क्षेत्रों में तो महिलाएँ इतनी कुशल हैं कि वे स्वयं भी पेड़ों पर चढ़ जाती हैं। वे सब कार्य जिसमें बारीकी, धैर्य, तल्लीनता और समय की आश्यकता होती है, जैसे बण्डल बनाना, लाख छीलना इत्यादि महिलाएं पुरूषों की अपेक्षा अच्छे ढंग से करती है। लाख की खेती से प्राप्त आमदनी से उन्हें घर को सुचारू रूप से चलाने में भी मदद मिलती है।
लाख, किसानों के लिए नगदी आय का साधन है। घरेलू काम में आने वाली दैनिक जरूरतें वे लाख बेचकर ही पूरी करते हैं। साप्ताहिक हाट या बाजार में अक्सर महिलाओं को लाख बेचते हुए देखा जा सकता है जिसके बदले में वे जरूरत का सामान खरीदती हैं। लाख की खेती उन्हें स्वरोजगार का साधन भी उपलब्ध करवाती है।
लाख की खेती से होने वाली आय, पोषक वृक्षों की संख्या और उनके प्रकार पर निर्भर करती है। दुसरे शब्दों में यदि आपके पास पलास के 100 पोषक वृक्ष उपलब्ध हैं तो लगभग 12000 रूपए सालाना की आय ली जा सकती है। इसी पारकर 100 बेर के वृक्षों से 20,000 रूपए की वार्षिक आमदनी तथा 100 कुसूम के वृक्षों से एक लाख रूपए से भी ज्यादा आमदनी हो सकती है। साथ ही साथ उपलब्ध वृक्षों प्रकारानूसार प्रतिवर्ष 40 से 228 श्रम दिवसों का सृजन भी होता है। यदि लाख प्रसंस्करण और उद्योग में मिलने वाले अवसर भी जोडें तों यह संख्या की और अधिक हो जाएगी। लाख आधारित उद्योगों में सालाना लगभग दस लाख श्रम दिवस सृजित होते हैं।
लाख की फसल होने के उपरांत कारख़ानों में इसका शुद्धिकरण किया जाता है। इसके लिए छिली हुई लाख की धुलाई के पश्चात चौरी को सुखाना, सूप से साफ करना, छलनी से छानना तथा चपड़े के टुकड़े कर उसका भण्डारण जैसे कार्य महिलाओं द्वारा ही किये जाते हैं। इन कामों को महिलाएं, पुरूषों के मुकाबले बेहतर ढंग से कर सकती हैं। महिलाएँ चाहें तो बेहतर आमदनी की लिये गांवों में ही लाख आधारित कुटीर उद्योग भी लगा सकती हैं।
वैसे तो लाख आधारित कुटीर उद्योग बहुत से है लेकिन लाख से चौरी बनाना, सूप से साफ करना, छलनी से छानना तथा चपड़े के टुकड़े कर उसका भंडारण जैसे कार्य महिलाओं द्वारा ही किये जाते हैं। इन कामों को महिलाएं, पुरूषों के मुकाबले बेहतर ढंग से कर सकती हैं। महिलाएँ चाहें तो बेहतर आमदनी के लिए गाँवों में ही लाख आधारित कुटीर उद्योग भी लगा सकती हैं।
वैसे तो लाख आधारित कुटीर उद्योग बहुत से है लेकिन लाख से चौरी बनाना, चूड़ियाँ बनाना, मोहर लगाने की लाख यानी सीलिंग वैक्स तथा लकड़ी व मिट्टी के बर्तनों पर लेप के लिए वार्निश बनाना इत्यादि ऐसे उद्योग हैं जिन्हें महिलाएँ कुशलतापूर्वक कम पूँजी से ही चला सकती हैं। ऐसा करना से लाख की खपत को बढ़ावा मिलेगा. जिससे विदेशी मांग पर हमारी निर्भरता कम होगी तथा लाख की कीमतों में होने वाले उतार-चढ़ाव पर रोक लगाने के साथ –साथ मुनाफे में भी बढ़ोतरी होगी।
लाख की खेती करना बहुत आसान है। यदि आपके पास वृक्ष हैं तो बहुत कम पैसों से ही शुरू किया जा सकता है। इसी प्रकार लाख आधारित कुटीर उद्योग लगाने के लिए भी अधिक पूँजी की आश्यकता नहीं पड़ती। लाख की खेती करने से रोजगार तो मिलता ही है, इससे आर्थिक स्थिति में भी सुधार होता है।
विकास के नाम पर विभिन्न परियोजनाओं को लागू करने के लिए जंगलों की अंधाधुंध कटाई से पर्यावरण को तो काफी नुकसान पहुँचा ही है. इससे बड़े पैमाने पर आदिवासी लाख उत्पादक अपनी जड़ों से विस्थापित हुए हैं। कम की खोज में पुरूषों के दुसरे प्रदेशों की ओर पलायन के कारण महिलाओं पर आर्थिक बोझ बढ़ा है। इन प्रतिकूल परिस्थितियों में लाख की खेती इनके लिए एकमात्र आशा की किरण है। लाख पोषण वृक्षों से मिलने वाली नियमित आमदनी के कारण लाख उत्पादन करने वाले क्षेत्रों में वनों के विनाश को रोकने में काफी हद तक सफलता मिली है। मनुष्य की आवश्यकताओं की पूर्ति और प्राकृतिक संसाधनों के उपयोग में संतुलन स्थापित करने में लाख उत्पादक महिलाओं की भूमिका प्रमुख है। महिलाओं में उद्यमिता विकास के लिए अपनायी जाने वाली नीतियों में महिलाओं को निर्णय लेने का अधिकार देने के विचार पर खास ध्यान दिया जाना चाहिए।
लाख की खेती करने या उद्योग लगाने से पहले यदि प्रशिक्षण ले लिया जाए तो इस कार्य को अच्छे ढंग से किया जा सकता है। भारतीय लाख अनूसंधान संस्थान में प्रशिक्षण की अच्छी व्यवस्था है। इसके लिए संस्थान कई प्रकार के प्रशिक्षण कार्यक्रम चलाता है। लाख की खेती करने के लिए किसान बहनों के लिए साप्ताहिक कार्यक्रम सबसे अच्छा है। इसी प्रकार कुटीर उद्योग लगाने हेतु विभीन उत्पादों को बनाने का प्रशिक्षण भी दिया जाता है। इसके अलावा संस्थान के विशेषज्ञ, स्वयंसेवी संस्थाओं के माध्यम से, आवाश्यकतानुसार गांवों में सिर्फ महिलाओं के लिए ही प्रशिक्षण का आयोजन करते हैं।
प्रशिक्षण संबंधी और अधिक जानकारी के लिए बहनें नामकुम स्थित भारतीय लाख अनूसंधान संस्थान के निदेशक अथवा संस्थान के निदेशक अथवा संस्थान के प्रौद्योगिकी हस्तांतरण विभाग के अध्यक्ष से व्यक्तिगत रूप से अथवा पत्र के माध्यम से संपर्क कर सकती हैं।
लाख की खेती करने अथवा लाख आधारित उद्योग लगाने के बारे में किसी भी प्रकार की कठिनाई हो, तो बगैर संकोच के भारतीय लाख अनुसंधान संस्थान से सम्पर्क करें। किसी भी प्रकार की समस्या का हल सुझाने में संस्थान यथासंभव हर कोशिश करता है।
स्रोत : जेवियर समाज सेवा संस्थान, रांची
Last Modified : 2/21/2020
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